आत्मा का देह से मिलन प्रशासन के भरोसे
आत्मा का देह से मिलन प्रशासन के भरोसे
एक नारी किस्मत की मारी भगवान के दिये प्रारब्ध को जीते हुए मानसिक नियमित रोगी बन गई । न जाने कब भगवान के रूप में भले माणूस ने रोगिणी मानसिक परेशान महिला को आज से आठ वर्ष पूर्व 2009 जनवरी में पुलिस / न्यायालय की प्रक्रियाए पूर्ण कर मथुरादास माथुर अस्पताल में मनोरोग विभाग में इलाज के लिए भर्ती कर दिया ।
पिछले आठ वर्षो में सभी प्रक्रियाए भूला दी गयी । अस्पताल में इलाज चलता रहा, लावारिस रोगिनी बन कर रह गयी “गुड़िया” ।
26 Oct 2016 को “गुड़िया” की मृत्यु हो जाने के बाद भी अंतिम संस्कार के लिए प्रशासनिक बधाए आई।
आठ वर्षो में निरीक्षक / बैठके / विजिटर्स बोर्ड की बैठके / एनजीओ आदि के भ्रमण / फोटोबाजी सभी खानापूर्ति बन कर रह गए। यहा तक की मरीजो की वास्तविक कठिनाइयो / लवारिसों की न्यायिक प्रक्रियाए / सूचनाए / पत्रिकाए आदि बंद डिब्बे में दाल दी गयी । इस तरफ अधीक्षक मनोरोग विभाग, अधीक्षक अस्पताल, प्रधानाचार्य, संलग्न चिकित्सालय ने भी अपना प्रशासनिक उत्तरदायित्व नहीं निभाया। ऐसे ही कितनी लावारिस देह अपनी आत्मा से बिछुड़ कर गति ब्रह्मलीन होने को तरसती रहेगी। या तरसती रही होगी।
हर तरफ से अस्पताल के रोगियो को जनता का तन मन धन से सदैव साथ मिला है, लेकिन न्यायिक / / पुलिस / प्रशासनिक व्यवस्थाओ / प्रक्रियाओ के तहत उलझाने तरसती देह के ब्रह्मलीन होने में रुकावटै डालती है।
आइए इस पुण्य कार्य के लिए एकजुट हो होवे।
हम अपने प्रयास करे व प्रशासन से उम्मीद करे की अपना पूर्ण दायित्व निभाते हुए प्रक्रियाओ की उलझनों से इन मासूम आत्माओ को राहत देवे।